Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 81
________________ बताया। न्याय-वैशेषिक के समान मीमांसकों ने यह माना कि चेतना आत्मा में स्वाभाविक नहीं है। अत: मोक्ष सुख-दुःख-रहित होता है।272 कुछ दूसरे मीमांसक यह स्वीकार करते हैं कि मोक्ष केवल दुःख से निवृत्ति नहीं है किन्तु उसमें शाश्वत आनन्द भी होता है।273 सांख्य-योग मोक्ष की निषेधात्मक धारणा को प्रतिपादित करते हैं किन्तु चेतना को आत्मा का स्वभाव बताते हैं। न्याय-वैशेषिक और पूर्व मीमांसा की तरह वे चेतना को एक पृथक्करणीय गुण नहीं मानते। मुक्ति आनन्द की अभिव्यक्ति नहीं है क्योंकि पुरुष सब गुणों से स्वतंत्र माना गया है।274 जब विवेक उत्पन्न होता है तो प्रकृति तुरन्त पुरुष को नहीं छोड़ देती है। उसका कार्य कुछ समय तक पूर्व आदत के वेग के कारण चलता रहता है।275 यह जीवनमुक्ति की स्थिति है। मरण होने पर जीवनमुक्त विदेहमुक्ति प्राप्त करता है जो पूर्णरूप से दुःख से रहित होती है।276 शंकराचार्य के अद्वैत वेदान्त के अनुसार मोक्ष आत्मा का ब्रह्म से तादात्म्य है, जो सार्वलौकिक सत्ता है। इसमें केवल दुःख का अभाव ही नहीं होता किन्तु यह आनंद की सकारात्मक अवस्था है। कोई भी व्यक्ति इस अवस्था को संसार में शरीर के रहते हुए प्राप्त कर सकता है। 272. Šāstradīpikā, P.188 273. Sastradipika, P.126, 127 274. Samkhyapravacana Sutra, 5/74 (vide Radhakrishnan, 1. P. Vol. II. P. 313) 275. सांख्यकारिका, 67 276. सांख्यकारिका, 68 Ethical Doctrines in Jainis Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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