Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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की पूजा। (ii) वाचिक तप- शास्त्र स्वाध्याय, अनाक्रमक, हितकारी
और सत्य वचन। (iii) मानसिक तप- शान्ति, मौन, आत्मसंयम, मन की प्रसन्नता और विचारों की पवित्रता।198 (2) तप जो दिखावे या आदर प्राप्त करने के लिए किया जाता है राजस होता है।199 (3) तप जो मोह के वशीभूत किया जाता है, अपने आप को या दूसरे को कष्ट देने
के लिए किया जाता है वह तामस होता है।200 - तीन प्रकार का दान इस प्रकार है- (1) सात्त्विक दान- जो
दान कर्त्तव्य समझकर तथा स्थान, समय और पात्र के अनुसार तथा बिना किसी अपेक्षा के दिया जाता है।201 (2) राजस दान- जो दान अनिच्छापूर्वक, अपेक्षा भाव तथा स्वार्थ के वशीभूत दिया जाता है।202 (3) तामस दान- जो दान घृणापूर्वक, बिना आदर के और समय, स्थान तथा पात्र के बिना विचारे दिया जाता है।203
तीन प्रकार का त्याग इस प्रकार है- (1) सात्त्विक त्यागदान, तप और अनासक्तिपूर्वक कर्म।204 (2-3) राजस व तामस त्यागअज्ञानवश क्रियाओं को त्यागना और दुःख का भय रखना क्रमश: राजस और तामस त्याग कहलाते हैं।205
198. भगवद्गीता, 17/14, 15, 16, 17 199. भगवद्गीता, 17/18 200. भगवद्गीता, 17/5, 6, 19 201. भगवद्गीता, 17/20 202. भगवद्गीता, 17/21 203. भगवद्गीता, 17/22 204. भगवद्गीता, 18/6 205. भगवद्गीता, 18/7, 8
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