Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जैनधर्म के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र पर निर्भर है। 132 यहाँ यह जानना चाहिए कि उपनिषद् और गीता में उस परम आत्मा में श्रद्धा जोकि विश्व का आधार है वह अन्दर की आत्मा से तादात्म्य रखता है किन्तु जैनधर्म में उस लोकातीत आत्मा में श्रद्धा जो केवल हमारे शरीर में है वह सम्यग्श्रद्धा है। योगीन्दु का कथन है कि आत्मा सम्यग्दर्शन है। 1 33 इस भेद के होते हुए भी सभी परम्पराएँ · आत्मजाग्रति और दिव्यत्व की प्राप्ति में विश्वास करती हैं। .
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श्रद्धा को हृदयंगम करने के पश्चात् ज्ञानं और चारित्र को ग्रहण करने का उद्देश्य बनाया जाना चाहिए । मुण्डकोपनिषद् के अनुसार आत्मा जो शरीर के अन्दर है, कान्तिमय है, शुद्ध है, जो आवश्यकरूप से उचित ज्ञान, सत्य, तप और ब्रह्मचर्य के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। 134 इसके अतिरिक्त यह उनके द्वारा अनुभव की जा सकती हैं जिन्होंने सभी दोषों और सभी इच्छाओं को नष्ट कर दिया है। 135 केवल बौद्धिक ज्ञान पर्याप्त नहीं है, यह कहीं नहीं पहुँचाता है। कठोपनिषद् का मानना है कि आत्मा न तो प्रवचन के द्वारा, न सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा और न अधिक सीखने के द्वारा प्राप्त की जा सकती है । 1 36 वह जो पाप क्रियाओं से निवृत्त नहीं हुआ है जिसका मन शान्त और संतुलित नहीं है वह गहन
132. तत्त्वार्थसूत्र, 1 / 1
133. परमात्मप्रकाश, 1/96 134. मुण्डकोपनिषद्, 3/1/5 135. मुण्डकोपनिषद्, 3 / 1 /5
कठोपनिषद्, 2/3/14
136. कठोपनिषद्, 1/2/23
मुण्डकोपनिषद्, 3/2/3
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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