Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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के ध्यान में अनुभव की जाती है वह सांसारिक जीवन में असंभव है।
तैत्तिरीयोपनिषद्द कहता है कि आत्मा की पाँच परतें होती हैं उनमें अंतिम परमानन्दमय आत्मा है। पहली परत भोजन से बनी है, दूसरी प्राणवायु से, तीसरी मन से, चौथी बुद्धि से और पाँचवीं परत आनन्द है। तैत्तिरीयोपनिषद् में भृगु ने परमसत्ता के स्वरूप के बारे में वरुण से प्रश्न पूछा। वह जो उत्तर मिला उससे संतुष्ट नहीं हुआ। वह अंतिम रूप से उस समय संतुष्ट हुआ जब उसने उत्तर दिया कि आनन्दमय चेतना सब वस्तुओं का आधार है।”
हम जैनधर्म में प्रतिपादित बहिरात्मा की तुलना- अन्नरसमय, प्राणमय और मनोमय आत्मा से कर सकते हैं। अन्तरात्मा की तुलना हम विज्ञानमय आत्मा से कर सकते हैं और परमात्मा की तुलना
आनन्दमय आत्मा से कर सकते हैं यद्यपि परमात्मा विश्व की चेतना नहीं है।
गीता के अनुसार भी आनन्द की प्राप्ति उच्चतम आदर्श है और यह परम मूल्य भी है। योगी जिसका मन पूर्णतया शान्त है, जो कषायरहित है, निष्कलंक है, लगातार आत्मा में अपने आपको लगाये रखता है वह ब्रह्म से सम्पर्क होने के कारण उच्चतम आनन्द प्राप्त करता है। छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार आत्मा का ध्यान करने से आनन्द की प्राप्ति होती है। 25. परमात्मप्रकाश, 1/116, 117
तत्त्वानुशासन, 246
तैत्तिरीयोपनिषद्, 2/1, 2, 3, 4, 5 27. Constructive Survey of Upanisadic Philosophy, P. 301 28. भगवद्गीता, 6/27, 28
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