Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Shivprasad Amarnath Jain View full book textPage 7
________________ दम मास्मा सम्बरिम में मी मासा सस्ता है। भवः साम्पाय मारय करना चाहिये। मान पात:काल का समय और पर अपने पास अपने २ भासन पर बैठे हुए नित्यकर्म पर रोई सामायिक कर सारसोई सम्पर पाठ को पारा, कोई बाध्याय दाग अपन मा पम्प भात्मानों के संग्रयों काप पर हो। इसने में पाय पूरपदमी अन पी ए. अपन किए हुए सामापिका का पूगणमानकर मायामिक की पाखाचमा करके शीघ्र ही भासन का बोध कर तप्पा मा पन लगे प पाय-हमपदमी न पूरा f-माप माम इतनी योग्रवा क्यों कर रहे सवार पूपमा न मति पघम में फराहि-माम क्या भोप मलूप नी कि भीए पाराम पपारने गर। पन्द्र ! मप गुरुपदाराम पपारन पास गे फिर पाप इवगे शीमा पर्पो र दो या परीरिपे। निस स गुरु माराम भी कपशन भी पाभाएं।Page Navigation
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