Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 13
________________ (१.) मिसको मुमार बोग प्रत्सन्त गसम त येस्वामी बीको मंदना मस्कार कर अपमे २ स्पामों में वे भाए। मित्र परो ! एक मकि इसी 7 माय है जिसके परने से धर्म ममागमा और माँ की निर्भरा होगा। भनेक भास्पा पर्म से परिचित होना । सो पर भक्ति सदेव समी गरिये गरमों का पान मी अपने मन में सदैप रसमा पाहिये जैसेरिनिस दिम परदेणे मे जिस नगर से बिहार विपा हो रसी दिन से ध्यान सममा दिपार पर्या पार पायेगे। पदि किसी कारण पण से पानिपत समझे हुये समय पर न पपार सप किसी द्वारा मा समाचार खेना उसके अनुसार गुरु देव की फिर सेवा भक्ति करनी पर नियम मस्पेस मास्पोमा पारिपे। यपपि ! पर देव अपभी चिके विरुदासपी म नही रखावे ति परस्पों सदा मार पनके वर्गगें पमे राने पाहिये । पौर ,एमके मस मिम पापी मुमने मी माग सदैव होमे पारि। सो यही पर मकि ।

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