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हेमचन्द्र जी के ऐसे कहे जाने पर सब श्रावक इकले प्रोफर गुरु महाराज जी के लेने को आगे चले तब जो जो श्रावक मार्ग में मिलते जाते थे वह सब साथ होते जाते ये जव मुनि महाराज बहुत ही निकट पधार गये तब लोगों ने गुरु महाराज जी के दर्शनों से अपनी आँखों को पवित्र किया । तव बड़े समारोह के साथ गुरु महाराज बहुत से अपने शिष्यों के साथ जैन उपाश्रय में पधारगये ।
वहां पीठ (चौकी) पर विराजमान हाकर लोगों को एक बड़ी ही रमणीय जिनेन्द्र स्तुति सुनाई उसके पश्चात् अनित्य भावना के प्रतिपादन करने वाला एक मनोहर पद पढ़कर सुनाया गया जिसको सुन कर लोग संसार की अनित्यता देख कर धम ध्यान की ओर रुचि करने लगे तब मुनि महाराज जी ने मंगली सुनाकर लोगों को प्रत्याख्यान करने का उपदेश किया तब लोगों ने स्वामी जी के उपदेश को सुनकर बहुत से नियम प्रत्याख्यान किये !
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फिर दूसरे दिन उपाश्रय में जव श्रावक लोग वा जैनेचर लोग इकट हुए तब मुनि महाराजजी ने धर्म