Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Shivprasad Amarnath Jain View full book textPage 5
________________ भाप र मय पा और किसी रूप में खुद इस संसार में माता पर वो इन पावों से मिरखेप न ही पसा इन से कोई सम्प रेवा मरमास्या गे सस रूप हमेशा सत पिच भामन्द है। __मो खोग पार किया सम्म खेता या भर वार मारण पर इस संसार में भाकर दुरों का माय करवापर सब स से मनावरपर का पया भाष श्पकता है कि पर इम झगड़ों में पड़े इस निये पर काना कि यदि काई मरमारे किरे पर तू ने पा रिया पाइसको मार दिया पामरा पाप भन्म मरण मादि भो भो मन दुख संसार में भीग मागत र पासम अपन २ माँ कापीम इस में रिसी का कोई चारा मारे इस सिय ईश्वर से एसे कामों में दोप दना सलग पाप का मागी पमना। सो पसा मत का कि दुस्स म पर ही दारे मुस स तो अपना पब रम्प की पा सपमरपालो मिस्प पति साकी पनन पर रहो बारिमे सपा मुख मित स माप रन से विनर रोमाव र शान्ति माहिती। भेठ प्रापार में पात्मा ग भावारPage Navigation
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