Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Shivprasad Amarnath Jain View full book textPage 4
________________ || नमः श्री वर्द्धमानाय ॥ प्रथम पाठ । ( ईश्वर स्तुति ) प्रिय वालको ईश्वर 'सिद्ध' परमात्मा 'खुदा' 'रव्व' 'गाड' ( GOD) इत्यादि यह जो नाम हैं सब उस परमेश्वर के ही नाम हैं जो कि ससार के तमाम प्राणियों के मानों को जानता है परमात्मा सर्वज्ञ और अनंत शक्तिमान होने से वह हमारे अन्दर के सब भावों के जानने वाला है हम जो भी पुण्य पाप करते हैं वे सब उसे ज्ञाव हो जाते हैं इसलिये यदि कोई भी बुरा या अच्छा काम हम कितना ही छुपा कर भी करें मगर वह उस से छुपा नहीं रहता वह सब कुछ जानता है इसलिये सदा उसका ही स्मरण करो और कोई भी बुरा काम न करो ताकि तुम्हारी आत्मायें पवित्र हों । हे बालको यह भी याद रक्खो कि परमात्मा न किसी को मारता और न ही जन्म देता है और न ही वहPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 788