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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/१५
. द्वितीय अंक (इस द्वितीय अंक में भी श्रीकंठ राजा के पूर्वभव का दृश्य है, जिसमें वे वणिकपुत्र शांतिलाल सेठ हैं। उनके सत्समागम और उपदेश से उनके अन्य मित्र किसप्रकार जुआ-व्यसन का त्याग करते हैं, उसका वर्णन है।)
(दो व्यापारियों का मंच पर प्रवेश) मगनलाल : मित्र! क्या बात है? कुछ परेशान से दिख रहे हो।
छगनलाल : हाँ भाई! आज सट्टे के बाजार में पाँच हजार का नुकसान हो गया है, उसकी चिंता लगी है।
मगनलाल : अरे! इसमें चिंता की क्या बात? आज जुए में पाँच हजार का एक दाव और लगा दो। बस फिर क्या.....?
छगनलाल : क्या बात है आज शांतिलाल सेठ दिखाई नहीं दे रहे हैं?
मगनलाल : वैसे तो सबसे पहले आ जाते थे, परन्तु आज उन्हें किसने रोक लिया? उनके बिना तो अपने खेल में मजा ही नहीं आता? (प्रथम अंक का छोटा भाई ही शांतिलाल सेठ है। वह मंच पर प्रवेश करता है)
छगनलाल : वह देखो, शांतिलाल सेठ आ रहे हैं।
मगनलाल : आइये! आइये!! सेठजी आज तो पाँच-पाँच हजार रुपये दाव पर लगाना तय हुआ है, परन्तु आपके बिना सब रुका है।
शांतिलाल सेठ : देखो भाई! मेरे सामने जुए का नाम भी मत लेना। आज से मैं तुम्हारी जुआ-मंडली में नहीं रहूँगा। अभी तक तो पापभाव में ही जीवन बिताता रहा हूँ, परन्तु आज से मैं अपना जीवन धर्म-मार्ग में ही लगाऊँगा।