Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 70
________________ जज - जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १४/६८ कोई कमी की थी ? जिसके कारण तैंतीस सागर तक संसार में रहने की सजा हुई, जिसके कारण उन्हें पूर्ण निराकुल मोक्ष पद से वंचित रहना पड़ा ? नहीं जज साहब ! नहीं; कमी तो मात्र शुद्धापयोग की निरन्तरता में थी । वे शुद्धोपयोग से गिरकर शुभभाव में आ गये, जिसके कारण उन्हें मुक्ति के स्थान पर संसार ही मिला। अगर महाव्रतादिक धारण करने से ही मोक्ष होता तो सभी पाण्डव मुक्त हो गये होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ; क्योंकि जज साहब महाव्रतादिक शुभभाव हैं इसलिये बंध के कारण हैं और धारण हो वह मोक्ष का कारण नहीं हो सकता । इसलिये दया दान-पूजादिक के भाव भी उपादेय नहीं हैं। मैं इतना ही कहना चाहूँगा और अदालत से दरखास्त करूँगा कि मेरे काबिल दोस्त को अदालत में ठोस तथ्य पेश करने की हिदायत दी जाये । देट्स आल । अदालत का वक्त बरबाद न किया जाये; अदालत में ठोस तथ्य ही पेश किए जायें । पुण्य वकील- मीलॉर्ड ! ठोस तथ्यों के रूप में मैं अदालत में कुछ प्रथमानुयोग की घटनाओं को पेश करना चाहूँगा। मैं सबसे पहले इन्द्रभूति गौतम की याद दिलाना चाहूँगा जो पूर्व में ब्राह्मण था और जैन शासन का घोर विरोधी था जज साहब ! यदि उसका पुण्य का उदय न होता तो समवशरण तक कैसे पहुँचता ? और तीर्थंकर के दर्शन कर सम्यक्त्वी कैसे होता ? महाव्रत धारण करके गणधर कैसे बनता ? ये सब पुण्य का ही प्रभाव है जज साहब; जिसने मिथ्यादृष्टि को गणधर बना दिया । और दूसरे तथ्य के रूप में मैं भगवान महावीर के उस सिंह के भव की याद दिलाना चाहूँगा, जब वे एक क्रूर शेर की पर्याय में थे उस घनघोर जंगल में जहाँ वह क्रूर शेर हिरण को मारकर खा रहा था तभी वहाँ दो

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