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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/६९ चारणऋद्धिधारी मुनियों का आगमन होता है। मैं पूछता हूँ जज साहब ! क्या बिना पुण्य के उदय के इतना उत्कृष्ट समागम मिल सकता था, सम्यक्त्व हो सकता था ? नहीं हो सकता था इसीलिये मैं कह रहा हूँ जज साहब पुण्य मोक्षमार्ग में उपादेय है
और पुण्य के कारण शुभ भाव भी मोक्षमार्ग में उपादेय है। क्या
मेरे काबिल दोस्त इस अतीत को कैसे झुठला सकते हैं ? धर्म वकील - हाँ जज साहब ! वकील साहब द्वारा दिये गये तमाम तथ्यों से
भी ये सिद्ध नहीं होता कि पुण्य मोक्षमार्ग में उपादेय है बल्कि ये सभी घटनायें आत्मानुभूति रूप शुद्धोपयोगरूप शुद्धभाव की ही विजय को ही साबित करनेवाली हैं। सबसे पहले मेरे काबिल दोस्त ने कहा कि इन्द्रभूति गौतम के पुण्य का उदय था, इसलिये सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति हुई। अगर समवशरण आदि में जाने रूप पुण्योदय से मोक्षमार्ग प्रगट होता है तो मंखिलगोशाल को क्यों नहीं हुआ ? वह तो इन्द्रभूति गौतम से ६६ दिन पहले समवशरण गया था और ६६ दिन रुका भी था। क्या वह पुण्य के उदय से नहीं पहुंचा था ? जज साहब ! पहुँचा था, पुण्योदय से ही पहुँचा था; क्योंकि बिना पुण्योदय के प्रशस्त संयोग नहीं मिला करते। इन सबके बावजूद वह मिथ्यादृष्टि रहा । क्या उसके पुण्य में कोई कमी थी, कमा तो एक चीज में थी; जिसका नाम है निर्विकल्प आत्मानुभूति, शुद्धभाव; जिसके होने पर नियम से मोक्षमार्ग होता है। दूसरे प्रमाण के रूप में उन्होंने कहा कि शेर की पर्याय में महावीर के जीव को पुण्य के कारण सम्यक्त्व हुआ, मैं अपने काबिल दोस्त को थोड़ा और पीछे ले जाना चाहूँगा। जब महावीर का ही जीव मारीचि की पर्याय में था तब साक्षात् तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का संयोग हुआ था और तीर्थंकर का समागम उत्कृष्ट पुण्य के बिना हो नहीं सकता। इतना पुण्य होने पर भी वहाँ