Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 83
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/८१ सुकृतकुमार - लगता है आप एकदम ठीक कह रहे हैं। मैं तो अब पण्डित दौलतरामजी और पण्डित बनारसीदासजी का गहराई से अध्ययन करूँगा। जज साहब - यह अदालत सुकृतकुमार को अधूरे व एकांगी बयान देने के जुर्म में ये चेतावनी देती है कि आगे से कभी भी इस अदालत में इसप्रकार के बयान न दें। नहीं तो कानूनी कार्यवाही की जायेगी। अब आप जा सकते हैं। धर्म वकील - जज साहब अब भी कोई गुंजाइश हो तो मैं अदालत में एक ऐसे पण्डितजी को बुलाना चाहता हूँ जिन्होंने पण्डित टोडरमलजी के “मोक्षमार्ग प्रकाशक" का बहुत गहराई से अध्ययन किया है तथा जिनकी गवाही इस बात को साफ कर देगी कि पुण्य मोक्षमार्ग में हेय है या उपादेय । जज- इजाजत है। बाबू - पण्डित स्वरूपचन्दजी शास्त्री अदालत में हाजिर हों। (बाबू शपथ दिलवाता है पण्डितजी दोहराते हैं) धर्म वकील - पण्डितजी साहब ! पण्डित टोडरमलजी के अनुसार पुण्य मोक्षमार्ग में हेय है या उपादेय ? पण्डितजी - इस संबंध में अपने विचार रखते हुए पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक में लिखा है कि निचली दशा में कितने ही जीवों को शुभोपयोग और शुद्धोपयोग का युक्तपना पाया जाता है; इसीलिये उपचार से व्रतादिक शुभोपयोग को मोक्षमार्ग कहा है; वस्तु का विचार करने पर शुभोपयोग मोक्ष का घातक ही है, क्योंकि बंध का कारण वही मोक्ष का घातक है -- ऐसा श्रद्धान करना। इसप्रकार शुद्धोपयोग को ही उपादेय मानकर उसका उपाय करना और शुभोपयोग-अशुभोपयोग को हेय जानकर उनके

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