Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 90
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४८८ यह पक्ष कि "मोक्षमार्ग में पुण्य और शुभ भाव उपादेय है और सत्पुरुष कानजीस्वामी ने इसके विपरीत प्रचार किया है" यह सरासर झूठ और बेबुनियाद है। ___ तथा यह अदालत धर्मचन्द के पक्ष से सहमत है कि मोक्षमार्ग में शुभ भाव और पुण्यभाव होते हैं, पर उपादेय नहीं; आत्मानुभव रूप वीतराग धर्म ही उपादेय है। जिनागम में दया-दान-पूजा-व्रत के जितने भी उपदेश दिये जाते हैं यानि उन्हें मोक्षमार्ग कहा जाता है, वे सब कथन व्यवहार नय से हैं, वे भाव अशुभ में जाने की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं पर उनको ही मोक्षमार्ग मान लेने से सच्चे मोक्षमार्ग के लोप का प्रसंग आएगा। अत: शुभ भाव भूमिकानुसार हो तो कोई हानि नहीं है, होने भी चाहिए, होते भी हैं; पर इनको ही मोक्ष का कारण मान लेना मिथ्यात्व है। तथा कुछ तथाकथित स्वार्थी लोगों ने सत्य को गहराई से समझे बिना मात्र विवाद का बिन्दु बनाकर समाज में उत्तेजना पैदा की है। यह अदालत उन तमाम लोगों को चेतावनी देती है कि वे इसप्रकार किसी ज्ञानी पुरुष के उपर झूठे आक्षेप न लगायें अन्यथा उन्हें चार गति चौरासी लाख योनियों रूपी जेल में अनन्तकाल के लिए जाना पड़ सकता है। - यह अदालत पुण्यप्रकाश को हिदायत देती है कि वे समयसार का पुण्यपाप एकत्वाधिकार, नाटक समयसार का पुण्य-पाप एकत्वद्वार, योगसार, मोक्षमार्ग प्रकाशक का सातवाँ अधिकार, सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के प्रवचन रत्नाकर भाग-४, श्रावकधर्म प्रकाश, ज्ञानगोष्ठी; डॉ० हुकमचन्द भारिल्लकृत पुण्य-पाप एकत्व अधिकार का अनुशीलन और पण्डित रतनचन्द भारिल्ल के जिनपूजन रहस्य का स्वाध्याय कर अपनी भ्रमितबुद्धि को सुधभरें अन्यथा अनन्तकाल के लिए संसार रूपी जेल में बंद रहना पड़ेगा। जय जिनेन्द्र ! प्रस्तुति :-सर्वश्री सौनू शास्त्री पोरसा, अभय शास्त्री खैरागढ़, . अविरल शास्त्री विदिशा, सन्दीप शास्त्री गोहद, धर्मेन्द्र शास्त्री जयपुर, ललित शास्त्री बण्डा, मनीश शास्त्री रहली। नाम- 2005SMALLAHAIR

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