Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 87
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/८५ धर्म वकील - वकील साहब ने आगम की गहराई से जो ये बातें कहीं हैं, . ये उनके अधूरे अध्ययन की ही परिचायक है; क्योंकि आचार्य अमृतचन्द्र ने पुरुषार्थसिद्धपाय में स्पष्ट लिखा है कि - येनांशेन सुदृष्टिस्तेनांशेनास्य बंधनं नास्ति। येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बंधनं भवति॥ येनांशेन तु ज्ञानं तेनांशेनास्य बंधनं नास्ति। येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बंधनं भवति॥ येनांशेन चारित्रं तेनांशेनास्य बंधनं नास्ति। येनांशेन तुरागस्तेनांशेनास्य बंधनं भवति ॥ अर्थात् जितने अंशों में आत्मा का श्रद्धान-ज्ञान-चारित्र रहता है; उतने अंशों में जीव बंधरहित होता है और जितने अंशों में राग विद्यमान है उतने अंशों में बंध होता है। पुण्य वकील- योरऑनर ! क्या मेरे काबिल दोस्त यह कहना चाहते हैं कि शुभभाव और पुण्य का मोक्षमार्ग में अस्तित्व ही नहीं है ? धर्म वकील - मैंने ऐसा कब कहा, मैं तो यह कह रहा था कि पुण्य मोक्षमार्ग में हेय है। जिनागम में ही उद्धृत इस बात को सत्पुरुष कानजीस्वामी ने अत्यन्त सरलतापूर्वक सामान्यजन के सामने रखा है। कुछ लोगों का यह भ्रम है कि कानजीस्वामी एकान्तवादी थे, उन्होंने जिनागम में से दया-दान-पूजा सबको ग्डा दियाहै जबकि उन्होंने कुछ भी नहीं उड़ाया; अपितु जिनागम में जिसप्रकार निरूपण आया था, उसीप्रकार अनेकान्त का संतुलन रखते हुए समझाया है। मैं इस बात की पुष्टि के लिए पं. ज्ञानचन्दजी शास्त्री को अदालत में बुलाने की इजाजतचाहता हूँ जिन्होंने सत्पुरुष श्रीकानजीस्वामी के प्रवचनों के संग्रह “प्रवचन रत्नाकर" का बहुत गहराई से अध्ययन किया है और उनके अनेक टेप-प्रवचन भी सुने हैं। जज - इजाजत है। बाबू - (बाबू शपथ दिलाता है और पण्डितजी दोहराते हैं।)

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