Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 73
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/७१ से मन्दिर में आ जाते हैं और चार घंटे रोज पूजन करते हैं और फिर जाकर अन्न-जल ग्रहण करते हैं - ऐसे धर्मात्मा इस पंचम काल में देखने को ही कहाँ मिलते हैं! ज्ञानचन्द - हाँ ये पूजा-पाठ तो बहुत करते हैं, लेकिन भाई चरणदास ये कभी स्वाध्याय चर्चा में दिखाई नहीं देते हैं। करोड़ीमल - तो क्या हुआ भगवान के चरणों की सेवा तो करते हैं और जो भगवान के चरणों की सेवा करते हैं वे ही सबसे बड़े धर्मात्मा हैं, वे ही सबसे पहले मोक्ष जाते हैं। पुण्य वकील- बस ! देखा जज साहब ! पूजा-भक्ति करने वालों को ही जगत के लोग धर्मात्मा कहते हैं, क्योंकि पूजा भक्ति आदि में धर्म है; अत: शुभभाव धर्म होने से मोक्षमार्ग में उपादेय है इसके साथ ही मैं कुछ तर्क और आगम प्रमाणों को भी अदालत में पेश करने की इजाजत चाहता हूँ। जज - इजाजत है। पुण्य वकील- जज साहब इन तर्कों और आगम प्रमाणों से पुण्य की उपादेयता सिद्ध हो जाती है। सबूत नं. (१) मनुष्य भव से ही मोक्ष का मार्ग खुलता है और मनुष्य भव पुण्य के बिना नहीं मिल सकता। सबूत नं. (२) प्रथमानुयोग तथा चरणानुयोग में पुण्य को पग-पग पर ही धर्म कहा गया है। सबूत नं. (३) २८ मूलगुण जिन्हें चारित्र कहा जाता है, शुभभाव हैं। “चारित्र खलु धम्मो” यह अष्टपाहुड़ का प्रामाणिक वाक्य है। सबूत नं. (४) छठवें गुणस्थान में शुभोपयोग होता है और इसमें रहने वाले मुनि मोक्षमार्ग के अग्रणी पथिक होते हैं। सबूत नं. (५) और ये मेरा अन्तिम प्रमाण ! पुण्य को ही प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण कहा है। तीर्थंकर प्रकृति का पुण्य जो कोई एकबार बांध ले तो

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