________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/७५ दर्शन पाठ स्तुतियों आदि का बहुत गहराई से अध्ययन किया है और ये इनके ऊपर शोध प्रबंध भी लिख रहे हैं, उनको बुलाने
की इजाजत चाहता हूँ। जज - इजाजत है। बाबू- (बुलाता है। शपथ दिलाता है) पण्डितजी - (दोहराते हैं।) धर्म वकील - हाँ तो पण्डितजी ! क्या विनयपाठकार रागरूप शुभोपयोग को
मोक्ष का कारण मानते हैं ? पण्डितजी- देखिये वकील साहब! बात दरअसल ये है कि जितना भी भक्ति
और पूजन साहित्य है वह सब ही बहुमानपरक है। इसलिये कहीं तो भगवान को मोक्ष का दाता कह देते हैं, कहीं पूजन भक्ति से कर्म कटते हैं ऐसा कह देते हैं, सो ये सभी कथन उपचार
जानना और विनयपाठकार ने स्वयं ही आगे कह दिया है कि - राग सहित जग में रुल्यो मिले सरागी देव। वीतराग भेट्यो अबै, मेटो राग कुदेव ॥
देखिये, यहाँ तो राग को कुटेव कहकर मेटने को कहा है और जहाँ तक द्यानतरायजी की बात है तो उन्होंने भी कई जगह भजनों में रागादिक का निषेध किया है -
___ मगन रहो रे शुद्धातम में। राग-दोष पर को उतपात, निहचै शुद्ध चेतना जात॥
यहाँ राग में शुभ और अशुभ दोनों ही राग आ गये। धर्म वकील - प्वाइंट नोट किया जाये जज साहब । पण्डितजी ने अदालत में
ये एकदम साफ कर दिया है कि भक्ति-पूजन साहित्य में कथन उपचार से किये जाते हैं। मेरे काबिल दोस्त भी पूछना चाहें तो पूछे।