Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 74
________________ - क्या इन ठोस सबूतों को ठुकराया जा सकता है। इनका ठुकराना तो अनन्त तीर्थंकरों को ठुकराना होगा, क्योंकि ये सभी उनकी वाणी अर्थात् जिनवाणी में आये हुये तथ्यात्मक वाक्य हैं। क्या मेरे काबिल दोस्त के पास अब भी कुछ कहने को शेष है ? जज बाबू - जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १४ /७२ मोक्ष जाने की गारंटी मिल जाती है । और विनय पाठ में तो I गजब की ही बात आई है - तुम पद पंकज पूजतैं विघ्न रोग टर जाय । शत्रु मित्रता को धरें विष निरविषता थाय ॥ चक्री खग सुर इन्द्र पद मिलें आपतैं आप | अनुक्रम करि शिव पद लहैं मेंट सकल हनि पाप ॥ जज क्या धर्मवकील अपनी सफाई में अब भी कुछ कहना चाहेंगे ? धर्म वकील - ( ताली बजाते हुए) जज साहब ! मेरे काबिल दोस्त ने बड़ी मेहनत से ताश का महल खड़ा किया है, लेकिन अफसोस यह महल मेरे एक सबूत के झोंके से ही ढह जायेगा। इस कड़ी में मैं सबसे पहले भगवानदासजी को बुलाने की इजाजत चाहता हूँ। बाबू - अर्थात् भगवान के चरण कमल की सेवा करने से शिवपद मिलता है तथा पण्डित द्यानतरायजी ने लिखा है - तुम देवाधिदेव परमेश्वर, दीजै दान सवेरा । जो तुम मोक्ष देत नहीं हमको कहाँ किहि डेरा ॥ ― इजाजत है। भगवान के चरणों के दास, ईश्वर भक्त भगवानदासजी अदातल में हाजिर हों। (बाबू शपथ दिलवाता है) - बोलिये ! मैं जो कुछ कहूँगा, सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा । भगवानदास - ( दोहराता है)

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