Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 68
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १४/६६ इसलिये जज साहब ! सत्य-असत्य का निर्णय ठोस तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए किया जाये; मैं इतना ही कहना चाहता हूँ। पुण्य वकील- मीलॉर्ड आज की बहस का मुद्दा है कि पुण्य मोक्षमार्ग में हेय है या उपादेय ? मेरे मुद्दई वकील का कहना है कि शुभभाव में धर्म नहीं है और वह मोक्षमार्ग में हेय है; तो फिर मैं पूछता हूँ कि मेरे काबिल दोस्त रोज सुबह छह बजे उठकर नहा-धोकर मन्दिर क्यों जाते हैं ? तथा पूजा और स्वाध्याय क्यों करते हैं ? यदि ये हैं तो इनमें अपना वक्त क्यों बरबाद कहते हैं ? जंगल में जाकर ध्यान क्यों नहीं लगाते ? इसीलिये न. कि मेरे काबिल दोस्त भी इसे धर्म मानते हैं। इसे मोक्षमार्ग में उपादेय मानते हैं। क्या मेरे काबिल दोस्त इस बात से इंकार करते हैं ? देट्स आल । धर्म वकील - मीलॉर्ड ! शायद मेरे काबिल दोस्त ने इस बात पर विचार नहीं किया कि रोज मन्दिर जाने वाले और भक्ति पूजन करने वाले लोग भी भव-भ्रमण से नहीं छूट पाते । यदि इन सबसे धर्म होता तो हम सब कब के मुक्त हो गये होते; लेकिन नहीं हुये, क्योंकि ये मोक्षमार्ग नहीं बल्कि वे भाव हैं जो मोक्ष जाने के पूर्व छूट जाते हैं, यदि न छूटें तो मुक्त न हों। हाँ, मैं यह बात मानता हूँ कि मैं रोज मन्दिर जाता हूँ, रोज स्वाध्याय करता हूँ; लेकिन यह करते-करते मोक्ष हो जायेगा यह मैं कदापि नहीं मानता। अगर मैं इनमें धर्म मानकर सन्तुष्ट हो गया तो कभी मुक्त नहीं हो पाऊँगा । इसलिये जज साहब मैं शुभ भावों का निषेध नहीं कर रहा हूँ वे तो भूमिकानुसार होते ही हैं और होना भी चाहिये; लेकिन मैं इन्हें धर्म मानने से इंकार करता हूँ । देट्स आल । पुण्य 'वकील - ठीक है वकील साहब ! ऐसा मान भी लिया जाये कि दयादान-पूजादिक के भाव मोक्षमार्ग और धर्म नहीं हैं तो फिर मैं आपसे पूछता हूँ कि आज-तक बिना देव-शास्त्र-गुरु को माने और बिना स्वाध्याय किये कोई सम्यग्दृष्टि हुआ है। आजतक

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