Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 27
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १४ / २५ चतुर्थ अंक (श्रीकंठ राजा की सभा) (तृतीय अंक में जो इन्द्रसभा थी, उसी को श्रीकंठ राजा की सभा में परिवर्तित करना है। सिंहासन खाली है।) दरबारी : सोने की छड़ी, चांदी की मशाल, जरियन का जामा, मोतियों की माल, जैनधर्म के परमभक्त श्रीकंठ राजा की जय हो, हो, जय हो ! दरबार में राजाजी पधार रहें हैं, जय सावधान ! mla (सभी दरबारी खड़े हो जाते हैं। श्रीकंठ राजा आकर बैठ जाते हैं ।) राजा श्रीकंठ : दीवानजी! राज्य - व्यवस्था के क्या समाचार हैं ? महाराज ! दीवानजी : आपके प्रताप से राज्य की व्यवस्था भली प्रकार चल रही है। जैनधर्म प्रताप से सर्वत्र शांति है। राजा श्रीकंठ : भंडारीजी ! आप क्या समाचार लाये हैं ? भंडारीजी : महाराज ! आपके पुण्य - प्रताप से राज्य का भंडार भरपूर है। दूसरी खुशी का समाचार यह हैं कि आज आपका जन्मदिन है। इसकी खुशी में राज्य के खजाने में से पाँच लाख सोने की मुहरों ! के दान करने का निश्चय किया है। राजा श्रीकंठ : बहुत अच्छी बात है, परन्तु इस रकम का उपयोग करोगे कैसे? नगरसेठजी ! इस संबंध में क्या विचार है ? नगरसेठ : महाराज ! हमने यह विचार किया है कि सवा लाख सोने की मोहरें जिनमंदिर के उपयोग में खर्च की जावें। सवा लाख मोहरें जिनवाणी की प्रभावना में लगाई जावें और सवा लाख मोहरों

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