Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ दृढ़ हो गई हैं। अतः हमारी समाज में एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता भी अनुभव की जा रही थी जो आसानी से जैनधर्म के सिद्धान्तों की महत्ता और वास्तविकता जनता को बता सके । फलतः जैनधर्म के सर्वोपयोगी मोटे २ सिद्धान्तों का सार लेकर राष्ट्रभाषा द्वारा नवीन ढंग से प्रस्तुत करने का यह प्रयास किया गया है । अल्पज्ञता व प्रकाशन की शीघ्रता में जो त्रुटियां रह गई हों, उनके लिये क्षमा चाहते हुये हम अपने प्रेमी पाठकों से सानुरोध निवेदन करते हैं कि वे कृपा कर निष्पक्ष भाव से इस पुस्तक को पढ़ने का कष्ट उठावें । इससे यदि उन्हें तनिक भी लाभ पहुंचा तो लेखक अपने परिश्रम को सफल समझेगा। "जैनधर्म की प्राचीनता" शीर्षक के अन्तर्गत विरोध परिहार, जैनधर्मप्रकाश, अनेकांत, माधुरी आदि पुस्तकों व पत्रिकाओं से जो उद्धरण दिये गये हैं उनके लेखकों का मैं हृदय से आभार मानता हुआ प्रस्तावना लेखक श्रीमान् माननीय भा० राजेन्द्रकुमार जी, कह्वर के ब्लाक बनवाने में यथेष्ट सहायक श्रीमान भाई शांतिचन्द्र जी, एवं वितरणकर्ता बन्धु का अनेकशः धन्यवाद देता हूँ। साथ ही विद्वानों से प्रार्थना करता हूँ कि वे इस पुस्तक पर अपनी शुभ सम्मति शीघ्र ही प्रदान करने की कृपा करें, ताकि अगले संस्करण में उसका सदुपयोग हो सके। बिजनौर । - नाथूराम डोंगरीय जैन १ दिसम्बर, ४० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 122