Book Title: Jain Dharm Author(s): Nathuram Dongariya Jain Publisher: Nathuram Dongariya Jain View full book textPage 5
________________ दो शब्द ! जैन धर्म क्या है, संसार का व हमारा इसके द्वारा क्या क्या हित हो सकता है तथा इसके सत्यतापूर्ण बहमल्य विचार कहां तक मानने व अमल करने योग्य हैं और उन पर अमल करने से हमारे दुःखों एवं वर्तमान भीषण अशान्ति का नाश होकर विश्वशान्ति का विशाल साम्राज्य कैसे स्थापित हो सकता है ? इन बातों से जनता का अधिकांश भाग आज बिलकुल अनभिज्ञ जान पड़ता है। प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं बातों का लक्ष्य कर लिखी गई है, ताकि संसार के प्रत्येक व्यक्ति का हित हो, और वह अपना व दूसरों का जीवन शान्ति पूर्वक व्यतीत कर आत्मा को उन्नति की ओर ले जाता हुआ परमात्म पद प्राप्त कर पूर्ण सुखी बन सके। जैन धर्म क्या है ? इस प्रश्न का खुलासा उत्तर यद्यपि जैन साहित्य के प्राचीन ग्रन्थों में विस्तार के साथ दिया गया है, किन्तु उनके संस्कृत व प्राकृत भाषा में होने के कारण अब्बल तो वे जन साधारण के लिये सुगम्य नहीं हैं। दूसरे जिन ग्रन्थों का हिन्दी आदि भाषाओं में अनुवाद भी होगया है या जो हिन्दी में स्वतंत्र रूप से लिखे गये हैं, उनके विस्तार और गहनता के कारण वे संक्षिप्त-रुचि रखने वाले पाठकों द्वारा पढ़े नहीं जाते। इसके सिवाय जैनधर्म के प्रचार और प्रचारकों के प्रायः अभाव होजाने से इसके सम्बन्ध में लोगों में बहुत कुछ भ्रमपूर्ण धारणाएँ भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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