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द्वारा शरीर से भिन्न अपनी आत्मा की शुचिता को प्रगट कर सकता है, इस प्रकार बार-बार चिन्तन करना अशुचित्व - अनुप्रेक्षा है ।
अशुभ तैजस - देखिए अप्रशस्त नि सरणात्मक तैजस ।
अशुभ नामकर्म- देखिए शुभ नामकर्म ।
अशुभोपयोग - जिसका उपयोग विषय कषाय मे मग्न है, कुश्रुति, कुविचार और कुसगति में लगा हुआ है, उग्र है और उन्मार्गगामी है उसके यह अशुभोपयोग है।
अश्रुपात- आहार के समय पीडावश साधु के आसु आ जाने पर या किसी कारण से दाता के आसु आने पर अश्रुपात नामक अन्तराय होता है।
अष्ट-द्रव्य-उत्तम जल, चन्दन, अखण्डित चावल, सुगंधित पुष्प, नैवेद्य, सुगंधित धूप, दीप और फल - ये पूजा के अष्टद्रव्य कहलाते है ।
अष्टम-पृथिवी - लोक के शिखर पर एक राजु चौडी, सात राजु लम्बी और आठ योजन ऊची अष्टम पृथिवी है। इसके मध्य मे अत्यत उज्ज्वल छत्र के समान ईषतप्राग्भार नाम का क्षेत्र है जिसका विस्तार मनुष्य लोक के बराबर है। यह सिद्धो का आवास स्थान हे और अष्टम- पृथिवी से 7050 धनुष ऊपर स्थित है।
अष्ट-मंगल-द्रव्य-छत्र, चमर, ध्वजा, झारी, कलश, ठौना, दर्पण ओर वीजना - ये आठ मागलिक द्रव्य हे जिनसे पाण्डुकशिला और समवसरण के गोपुर शोभित होते रहते है ।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 31