Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

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Page 273
________________ नौ ग्रैवेयक अधो ग्रैवेयक - सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध मध्य ग्रैवेयक - यशोधर, सुभद्र, सुविशाल उर्ध्व ग्रैवेयक - सुमन, सौमनस्य, प्रीतिकर नौ अनुदिश आदित्य, अर्चि, अर्चिमालिनी, वज्र, वैरोचन, सौम्य, सौम्यरूपक, अक, स्फुटिक पांच अनुत्तर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्धी • श्रुतज्ञान (2) अङ्ग-प्रविष्ट, अङ्ग बाह्य अङ्ग प्रविष्ट (द्वादशाग) - आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथाङ्ग, उपासकाध्ययन, अन्तकृद्दशाङ्ग, अनुत्तरोपपादिक दशाङ्ग, प्रश्न व्याकरण, विपार्क सूत्र, दृष्टिवाद दृष्टिवाद (5) परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत, चलिका पूर्व (14) उत्पाद पूर्व, अग्रायणी पूर्व, वीर्यानुवाद, अस्तिनास्ति प्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्म-प्रवाद, प्रत्याख्यानप्रवाद, विद्यानुवाद, कल्याणवाद, प्राणावाय, क्रिया विशाल, लोकविन्दुसार जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 281

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