Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar
View full book text
________________
देवगत्यानुपूर्वी
विहायोगति - प्रशस्त ओर अप्रशस्तविहायांगति, अगुरुलघुनाम, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपयाप्त, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुभंग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यश. कीर्ति, अयश कीर्ति, निर्माण, तीर्थकर
उच्चगोत्र, नीचगोत्र
गोत्रकर्म (2)
अन्तराय ( 5 )
दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय • शलाका पुरुष (63) -
तीर्थकर ( 24 )
ऋषभदेव, अजितनाथ, सभवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयासनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी
चक्रवर्ती ( 12 )
भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, सुभौम, महापद्म, हरिषेण, जयसेन, ब्रह्मदत्त
जनदर्शन पारिभाषिक कोश / 279

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275