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कुगुरु - आरभ और परिग्रह मे सलग्न साधु तथा पाखण्डी वेषधारी साधु कुगुरु कहलाते है ।
कुदेव - जो देव अपने साथ स्त्री, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र आदि परिग्रह रखते हे व रागद्वेष से दूषित होकर शाप और वरदान देते है वे कुदेव कहलाते है ।
कुधर्म - जिस धर्म या धर्मग्रन्थ मे हिसादि पापाचरण को धर्म माना गया हो उसे कुशास्त्र या कुधर्म कहते है ।
कुथुनाथ - सत्रहवे तीर्थंकर और छठे चक्रवर्ती। हस्तिनापुर के कौरववशी महाराज सूरसेन और रानी श्रीकान्ता के यहा जन्म लिया । इनकी आयु पचानवे हजार वर्ष थी। शरीर की ऊचाई पैतीस धनुष और आभा स्वर्ण के समान थी । चक्रवर्ती का विपुल - वैभव त्याग कर एक दिन दिगम्बर दीक्षा अङ्गीकार कर ली। सोलह वर्ष तक कठिन तपस्या के उपरान्त केवलज्ञान प्राप्त किया। इनके चतुर्विध सघ मे स्वयभू आदि पैंतीस गणधर साठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ पचास आर्यिकाए, तीन लाख श्राविकाए और दो लाख श्रावक थे। इन्होने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया।
कुब्जक - सस्थान- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कुवडा होता है उसे कुब्जक- शरीर-सस्थान नामकर्म कहते है ।
कुल - 1 दीक्षा देने वाले आचार्य की शिष्य परपरा को कुल कहते है । 2 पिता की वश परपरा को कुल कहते है ।
कुलकर-कर्मभूमि के प्रारभ मे आर्य पुरुषो को कुल या कुटुम्ब की
74 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश