Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

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Page 234
________________ समन्तानुपात-क्रिया-स्त्री-पुरुप ओर पशुओ के आने-जाने या उठने-वेठने के स्थान मे मल, मूत्र आदि करना समन्तानुपात-क्रिया है। समभिरूढ-नय-जो शब्द के अनेक अर्थों को छोडकर प्रधानता से एक ही रूढ अर्थ को ग्रहण करता है उसे समभिरूढ-नय कहते है। जेसे-'गो' शब्द के अनेक अर्थ हे पर यह शब्द एक पशु विशेष के अर्थ मे रूढ या प्रसिद्ध है। अत यह नय उसे ही ग्रहण करता है। इस नय के अनुसार जो शब्द जिस अर्थ या पदार्थ के लिए प्रसिद्ध हो गया है वह शब्द हर अवस्था मे उसी अर्थ या पदार्थ का वाचक होगा। जेसे-आठ उपवास करके मोक्ष जाने वाले मुनि को सदा अप्टोपवासी कहना। समय-1 मद गति से एक परमाणु को आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक जाने मे जितना काल लगता है, उसे समय कहते है। यह काल की इकाई है। 2 समय का अर्थ जीव या आत्मा है। १ समय का अर्थ आगम या मत भी है। स्व-समय और पर-समय ऐसे दो भेद समय के है। मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा को पर-समय और सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा को स्व-समय कहते हैं। समवसरण-तीर्थकर की धर्मसभा को समवसरण कहते हैं। जहा समस्त स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी और देवी-देवता समान भाव से भगवान का उपदेश सुनते हे अथवा जहा सभी भव्य जीव तीर्थंकर की दिव्यध्वनि के अवसर की प्रतीक्षा करते हैं वह समवसरण हे । सोधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुवेर के द्वारा तीर्थकरो के योग्य समवसरण की रचना की जाती है। 240 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश

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