Book Title: Jain Darshan Author(s): Kshamasagar Publisher: Kshamasagar View full book textPage 262
________________ अन्य स्थानो से तीर्थकर का माक्ष जाना आदि । हेय-जा पदार्थ छोडने योग्य है वे हेय कहलाते ह। ही यह चौवीस तीर्थकर वाचक वीज-पद ह। यह एकाक्षरी मत्र है। पदस्थ ध्यान मे इसका उपयोग होता है। इस मायावीज भी कहतेPage Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275