Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

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Page 264
________________ 5 औपध ऋद्धि (8) आमर्प, श्वेल, जल्ल, मल, विड्, सर्व, दृष्टिनिर्विष, आस्याविष 6 रस ऋद्धि (6) आशीर्विप, दृष्टिविष, क्षीरस्रावी, मधुस्रावी, घृतस्रावी, अमृतस्रावी 7. क्षेत्र ऋद्धि (2) अक्षीणमहानस, अक्षीणमहालय • आहार के छयालीस दोष 1 उद्गम दोष (16) अध्यधि, अनिसृष्ट, अभिहत, आच्छेद्य, अध कर्म, उद्भिन्न, क्रीत, परावर्त, प्रादुष्कर, प्रामृत, प्रामृष्य, पूति, मालारोहण, मिश्र, बलिशेष, स्थापित 2. उत्पादन दोष (16) धात्री, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, पूर्वस्तुति, पश्चात्स्तुति, विद्या, मत्रोद्पादन, मूलकर्म ___ 3. अशन दोष (10) शंकित, प्रक्षित, निक्षिप्त, पिहित, सव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त, त्यक्त 4. सयोजना आदि (4) सयोजना, प्रमाण, अगार, धूम 272 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश

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