Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ कमजोर या अगस्त नही गंता उग स्थिर नामफर्म कहते हैं। स्यूत-नामदन-भदन करन पर म्बय जुड मसतं पसे घी, नेल, पानी आदि स्थल का कालात है। ग्वल-सूक्ष्म-जा नन्द्रिय के दाग ग्राहा होकर भी अन्य इन्द्रियों सगरण नीयिजामान गाया, धूप, चारनी आदि स्थूल-सूक्ष्म कर कानान। म्यूल-रयत-जा दटन परम्वत नहीं जुडमते ऐसे काप्ट-पत्थर आदि म्यूल-म्यून मधालात है। स्नातक-जिनकवातिया कम नष्ट हो चुके हैं ऐसे अहंन्त भगवान नात नात। स्पर्शन-1 जिमादागम्पशल्यिा जाता है उस म्पशन इन्द्रिय कहते है। जीव का नीना काल में कहा तक जाना-आना समव है यह म्पशन नाम का अनुवाग-द्वार है। स्पर्शन-क्रिया-पमादयश म्पश करने योग्य सचंतन वस्तु का अनुवध म्पर्शन-क्रिया है। स्पर्श-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर मे ठडा, गरम आदि स्पर्श उत्पन्न हाता ह उस म्पर्श नामकम कहते है। यह आठ प्रकार का है-स्निग्य, स्क्ष, मृद्, कठोर, शीत, उष्ण, हल्का और भारी। स्याहाद-स्यात् का अथ है सापेक्ष या कचित् । वाद का अर्थ है कथन । अत अनेक घात्मक वस्तु के पत्येक धर्म का सापेक्ष रूप से कथन करन की शेली का नाम स्याद्वाद है। Ah / जेनदशन पारिभापिक कोश

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275