Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

View full book text
Previous | Next

Page 245
________________ दूध और किसी के फल साधारण होते है। इस तरह किसी-किसी वृक्ष के मूल, पत्ते, स्कन्ध, फल, फूल आदि अलग-अलग साधारण होते है और किसी के मिले हुए पूर्ण रूप से साधारण होते है। मूली, अदरक, आलू, अरवी आदि सव मूल अर्थात् जडे साधारण है। गन्ने के पर्व साधारण हे । वृक्षो पर लगी कोपले सव साधारण है । पाच उदुम्बर-फल और ग्वॉरफाठा की शाखाए साधारण हे । चना, मेथी, वथुआ, पालक आदि कोई-कोई साधारण है। साधारण-शरीर-जिस कर्म के उदय से बहुत जीवो के उपभोग के लिए एक ही साधारण शरीर होता हे उसे साधारण-शरीर-नामकर्म कहते है। साधु-निग्रंथ मुनि को साधु कहते है। जो घर-गृहस्थी सम्बन्धी समस्त आरम्भ परिग्रह ओर विषय-वासना का त्याग करके रत्नत्रय की आराधना करते हुए सयमित जीवन जीते हे वे साधु है। साधु के अट्ठाइस मूलगुण होते है-पाच महाव्रत, पाच समिति, पाच इन्द्रिय-विजय, छह आवश्यक, अस्नान, अदन्तधोवन, भूमि-शयन, केशलुचन, स्थिति-भोजन, एक-भक्त और अचेलकत्व। साधु-समाधि-व्रत व शील से सम्पन्न साधु के तप मे किसी कारण से विघ्न आने पर उसे दूर करना साधु-समाधि कहलाती है। यह सोलह कारण भावना मे एक भावना है। सामायिक-समता-भाव रखना सामायिक हे। अथवा सर्व सावद्य योग से निवृत्त होना सामायिक हे। श्रावक ओर साधु दोनो को सामायिक करना आवश्यक है। श्रावक प्रतिदिन नियतकाल पर्यन्त व्रत या प्रतिमा के रूप में सामायिक का अभ्यास करता है। साधु का जीवन जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 25%

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275