Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

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Page 254
________________ सूत्र सम्यग्दर्शन- मुनिया के दीक्षादि का वर्णन करने वाले आचाराङ्ग आदि आचार-सूत्र को सुनकर जो सम्यग्दर्शन हाता है उसे सूत्र-सम्यग्दर्शन कहन है । सूना आखली, चक्की, चुन्हा, बुहारी और जल रखने का स्थान- ये गृहस्थ के उपयोग में आन वाले पच-सूना है। आहार शुद्धि के लिये इन पाच स्थाना को स्वच्छ तथा जीव-जन्तु मे रहित रखना आवश्यक है | सूर्य-प्रज्ञप्ति - जिमम सूर्य की आयु, परिवार, गति, विम्ब की ऊचाई आदि का वणन हे उसे सूर्य प्रज्ञप्ति कहते है । सीम्या वाचना- व्याकरण सवधी दीपों की ओर ध्यान न देते हुए सरल आर सुवाच व्याख्या करना मीम्या वाचना है। स्कन्ध-जिन परमाणुओं में परस्पर वध हो चुका है वे स्कन्ध कहलाते है या स्थूल रूप से पकड़न, रखने आदि स्प व्यापार जिनमे है वे स्कन्ध है। पृथ्वी, जल, प्रकाश, छाया आदि सभी पुद्गल स्कन्ध है। स्कन्ध के उह भद है - स्थूल स्थूल, म्थूल, स्थूल सूक्ष्म, सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्म- सूक्ष्म । स्तव - चावीस तीर्थकरों के गुणों का कीर्तन करना स्तव कहलाता है। इसे चतुर्विशति स्तवन या स्तुति भी कहते है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल ओर भाव-वे छह स्तव के भेद है। स्तिवुक सक्रमण - गति, जाति आदि पिड प्रकृतियों के उदय आने पर शेष अनुदय प्राप्त प्रकृतिया जो उसी प्रकृति में सक्रमित होकर उदय में आती है उसे स्तियुक- सक्रमण कहते है । जेसे- एकेन्द्रिय जीवो क 262 / जेनदर्शन पारिभाषिक कांश

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