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चन्द्रप्रज्ञप्ति - चन्द्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और विम्व की ऊचाई आदि का वर्णन करने वाला चन्द्रप्रज्ञप्ति नाम का परिकर्म है ।
चन्द्रप्रभ - अष्टम तीर्थकर | इनका जन्म इक्ष्वाकु वंशी राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा के यहा हुआ । इनकी आयु दस लाख वर्ष पूर्व और शरीर की ऊचाई एक सौ पचास धनुष थी । शरीर की आभा श्वेत थी । एक दिन शरीर की नश्वरता का चितन करते-करते विरक्त होकर गृहत्याग कर दिया और जिनदीक्षा ले ली। तीन माह तक कठिन तपस्या के उपरात इन्हे केवलज्ञान हुआ । इनके समवसरण मे दत्त आदि तेरानवे गणधर, लगभग तीन लाख मुनि, तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकाए, तीन लाख श्रावक व पाच लाख श्राविकाए थी । इन्होने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया ।
चपापुर - बिहार प्रात की एक नगरी जहा तीर्थकर वासुपूज्य के पाचो कल्याणक हुए।
चरणानुयोग - जिसमें मुख्य रूप से गृहस्थ और मुनियो के व्रत, नियम और सयम का वर्णन किया गया हो वह चरणानुयोग हे। इस अनुयोग की कथन पद्धति का प्रयोजन यह है कि जीव पाप कार्य को छोडकर व्रत नियम रूप धर्म कार्य मे लगे, कषाय को मद करे ओर क्रमश वीतराग-भाव को प्राप्त करे ।
चरम - शरीर - चरम का अर्थ अंतिम है । जिस जीव को उसी भव से मोक्ष प्राप्त होना है उस जीव का शरीर चरम - शरीर कहलाता है ।
चर्या - परीप - जय - जो साधु अपने गुरु की आज्ञा से अतिथि की तरह एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में गमन करता है और मार्ग मे तीक्ष्ण ककड, जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 93