Book Title: Jain Darshan
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Kshamasagar

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Page 212
________________ उन मेघो को बडी-बडी बूदो मे निरतर बरसते हुए चितन करे । इस बरसते हुए जल से जो आग्नेयी- धारणा मे शरीर के जलने से भस्म उत्पन्न हुई थी उस भस्म का प्रक्षालन करता हुआ चिन्तन करे यह वारुणी-धारणा है। वासुपूज्य - बारहवे तीर्थंकर । चम्पापुरी के राजा वसुपूज्य और रानी जयावती के यहा जन्म हुआ । इनकी आयु बहत्तर लाख वर्ष थी और शरीर सत्तर धनुष ऊचा था। शरीर की आभा कुकुम के समान लाल थी । कुमार काल के अट्ठारह लाख वर्ष बीत जाने पर ससार से विरक्त होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। एक वर्ष की कठिन तपस्या के फलस्वरूप इन्हे केवलज्ञान हुआ । इनके सघ मे छियासठ गणधर, बहत्तर हजार मुनि, एक लाख छह हजार आर्यिकाए, दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविकाए थीं। इनके पाचो कल्याणक चम्पापुरी मे हुए । विकथा - धर्म - कथा से रहित मात्र अर्थ और काम-कथा करना विकथा कहलाती है । पापास्रव में कारणभूत चार प्रकार की विकथा प्रसिद्ध है - स्त्री - कथा, राज - कथा, चोर-कथा और भोजन- कथा | विकलेन्द्रिय-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीवो को विकलेन्द्रिय या विकलत्रय कहते हैं । विकल्प - 1 "मैं सुखी हू या मैं दुखी हू - इस प्रकार जो अतरग मे हर्ष-विषाद रूप भाव होता है उसे विकल्प कहते है । 2 पदार्थ का प्रतिभास विकल्प कहलाता है या यांग के परिवर्तन को विकल्प कहते हैं जैसे- 'यह घड़ा है या यह वस्त्र है' इस प्रकार एक के बाद एक 216 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश

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