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द्रव्य-कर्म- जीव के शुभाशुभ भावो के निमित्त से बधने वाले सूक्ष्म पुद्गल स्कन्धो को द्रव्य-कर्म कहते है । ये आठ प्रकार के है - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ।
द्रव्यत्व - जिसके द्वारा द्रव्य का द्रव्यपना अर्थात् एक पर्याय से दूसरी पर्याय रूप परिणमन निरतर बना रहता है वह द्रव्यत्व - गुण है ।
द्रव्य - निक्षेप - आगामी पर्याय की योग्यता वाले उस पदार्थ को जो उस समय उस पर्याय के अभिमुख हो, द्रव्य कहते है । द्रव्य का आगामी या पूर्व पर्याय की अपेक्षा कथन करना द्रव्य-निक्षेप कहलाता है। जैसे-आगे सेठ बनने वाले बालक को सेठ कहना या जो राजा दीक्षित होकर मुनि अवस्था में विद्यमान है, उन्हे अभी भी राजा कह देना । द्रव्य-परिवर्तन- द्रव्य-परिवर्तन के दो भेद है-नो कर्म द्रव्य-परिवर्तन ओर कर्म द्रव्य-परिवर्तन। इसे पुद्गल परिवर्तन भी कहते है। नो कर्मद्रव्य-परिवर्तन - किसी एक जीव ने औदारिक, वैक्रियिक या आहारक इन तीनो शरीरो और आहार आदि छह पर्याप्तियो के योग्य पुद्गलो को एक समय मे ग्रहण किया फिर वे पुद्गल स्कध द्वितीयादि समय मे निर्जीण हो गए तत्पश्चात् अगृहीत परमाणुओं को अनन्त वार ग्रहण करके उस जीव ने छोडा, मिश्र परमाणुओ को अनन्त बार ग्रहण करके छोड़ा और बीच मे गृहीत परमाणुओ को अनन्त बार ग्रहण करके छोड़ा तत्पश्चात् जब उसी जीव के सर्वप्रथम ग्रहण किए गए वे ही परमाणु उसी प्रकार से पुन नो कर्म (शरीर) के रूप मे प्राप्त होते है तब यह सब मिलकर एक नो कर्म द्रव्य-परिवर्तन कहलाता है । कर्म द्रव्य - परिवर्तन - ससारी जीव निरतर कर्मवध करता
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 125