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कहते है । उपसर्ग चार प्रकार का है - मनुष्यकृत, देवकृत, तिर्यचकृत और प्रकृतिजन्य 12 देव, मनुष्य आदि के द्वारा साधु के ऊपर उपसर्ग होने पर आहार मे बाधा होती है यह उपसर्ग नाम का अन्तराय है |
उपसर्ग - केवली - जो मुनि उपसर्ग सहन करते हुए घातिया कर्मों को जीत कर केवलज्ञान प्राप्त करते है वे उपसर्ग - केवली कहलाते है ।
उपादान - कारण - किसी कार्य के होने मे जो स्वय उस कार्य रूप परिणमन करे, वह उपादान कारण कहलाता है। जैसे रोटी के बनने मे गीला आटा उपादान - कारण है।
उपाध्याय -- जो साधु जिनागम का उपदेश करते हे, स्वय पढते और अन्य साधुओ को पढाते है वे उपाध्याय कहलाते है । उपाध्याय परमेष्ठी चौदह विद्याओ के व्याख्यान करने वाले या तात्कालिक परमागम के व्याख्याता होते हैं। दीक्षा व प्रायश्चित आदि क्रियाओ को छोड़कर ये आचार्य के शेष समस्त गुणों से परिपूर्ण होते है ।
उपासकाध्ययनाङ्ग - जिसमे श्रावक-धर्म का विशेष विवेचन किया गया हो वह उपासकाध्ययनाङ्ग कहलाता है।
उभय-मन-वचन - सत्य और असत्य दोना रूप पदार्थ का जानने या कहने में जीव के मन ओर वचन की प्रयत्न रूप प्रवृत्ति को उभय-मन-वचन योग कहते है । जेसे - कमण्डलु मे जल भरने की क्षमता देखकर उसे घडा मानना या घडा कहना । जल धारण की क्षमता होने से वह घड़े की तरह हे पर घड़ा नहीं है । अत सत्य और असत्य दोनो रूप हे ।
56 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश