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कथा-1 मोक्ष पुरुषार्थ के लिये उपयोगी होने से धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थ का कथन करना कथा कहलाती है। 2 जिससे जीवो को स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है वह धर्म कहलाता है। धर्म से सबध रखने वाली कथा को धर्मकथा या सत्कथा कहते है। 3 प्रथमानुयोग
आदि शास्त्र ही धर्मकथा है। आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, सवेगनी और निर्वेगनी-ये चार धर्म-कथा के भेद है।
कदलीघात-मरण-विष, वेदना, रक्त-क्षय, भय, शस्त्राघात, सक्लेश, अनीति, आहार व श्वास के रोकने आदि किसी बाह्य कारण के द्वारा जो सहसा आयुका घात होता है उसे कदलीघात-मरण या अकाल मृत्यु कहते है। करण-लब्धि-करण का अर्थ परिणाम है। सम्यग्दर्शन के योग्य परिणामो की प्राप्ति होना करण-लब्धि है। करण-लब्धि भव्य जीवो को ही होती है। करण-लब्धि के अतर्गत जीव अध प्रवृत्त करण, अपूर्वकरण और अनिवृत्ति करण रूप तीन करण करता है। करणानुयोग-लोक-अलोक के विभाग, युगो के परिवर्तन और चारो गतियो के स्वरूप को बताने वाला शास्त्र करणानुयोग है। इस अनुयोग के कथन का प्रयोजन यह है कि लोक-अलोक आदि के वर्णन मे उपयोग रम जाए तो पाप-प्रवृत्ति से छूटकर जीव स्वयमेव धर्म मे लग जायेगा। लोक-अलोक का ऐसा सूक्ष्म वर्णन पढने से श्रद्धान मे दृढता ओर परिणामो मे निर्मलता आयेगी।
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 65