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कल्याणवाद-पूर्व-जिसमे सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणी के गमन-क्षेत्र, उपपाद-स्थान, अनुकूल-प्रतिकूल गति तथा उसके फल का, पक्षियो के शब्दो का एव तीर्थकर के पच कल्याणको का वर्णन किया गया है वह कल्याणवाद-पूर्व नाम का ग्यारहवा पूर्व है। कवलाहार-मनुष्य और तिर्यचो के द्वारा कवल अर्थात् ग्रास के रूप मे जो आहार मुख से ग्रहण किया जाता है वह कवलाहार है। यह खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय-ऐसे चार प्रकार का है। कषाय-आत्मा मे होने वाली क्रोधादि रूप कलुषता को कषाय कहते है। क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार कषाये है। कषाय-समुद्घात-बाह्य निमित्त पाकर कषाय की तीव्रता मे जीव के आत्म-प्रदेश शरीर से तिगुने फैल जाते हे यह कषाय-समुद्घात हे। काक-आहार के लिए जाते समय या आहार करते समय साधु के ऊपर कौआ आदि पक्षी वीट कर दे तो यह काक नाम का अन्तराय है। काकादि-पिण्ड-हरण-आहार करते समय कोआ आदि पक्षी साधु के हाथ से ग्रास उठा ले जाए तो यह काकादि-पिण्ड-हरण नाम का अन्तराय है। कापोत-लेश्या-ईर्ष्या करना, चुगली करना, दूसरे का अपमान करना, आत्म-प्रशसा करना, दूसरो की निन्दा करना, अपनी प्रशसा सुनकर सतुष्ट होना, युद्ध मे मरने की इच्छा रखना और कर्तव्य-अकर्तव्य को नहीं पहचानना-ये सव कापोत लेश्या के लक्षण है। कामदेव-चौवीस तीर्थकरो के समय मे अनुपम सौदर्य को धारण करने
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 69