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उक्तावग्रह-दूसरे के द्वारा कहे जाने पर वस्तु को जानना उक्तावग्रह है। जैसे 'यह घडा है'-ऐसा कहने पर घडे को जानना। उग्रतप-जो साधु दीक्षा के दिन एक उपवास करके पारणा करता है फिर जीवन पर्यत एक उपवास और पारणा रूप तप करता है अथवा जो साधु एक उपवास के बाद पारणा करके दो उपवास करता है फिर पारणा करके तीन उपवास करता है इस प्रकार एक अधिक वृद्धि के साथ जीवन पर्यत उपवास करता है वह उग्रतप या उग्रोग्रतप ऋद्धि का धारी है। उच्चगोत्र कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का लोक पूजित कुलो मे जन्म होता है वह उच्चगोत्र कर्म हे। गोत्र, कुल, वश और सन्तान-ये सब एकार्थवाची है। उच्चार-आहार करते समय साधु के उदर से किसी रोग के कारण उच्चार अर्थात् मल निकल आने पर उच्चार नाम का अन्तराय होता
है।
उच्छ्वास-नामकर्म-सास लेने को उच्छ्वास और सास छोडने को नि श्वास कहते है। जिस कर्म के निमित्त से जीव उच्छ्वास और नि श्वास रूप क्रिया करने में समर्थ होता है उसे उच्छ्वास-नामकर्म कहते है। उत्कर्षण-कर्मो की स्थिति ओर अनुभाग मे वृद्धि होना उत्कर्षण कहलाता है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 49