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गृहत्याग करके जीवन पर्यन्त उद्दिष्ट आहार का त्याग कर देना ओर सदाचारी श्रावक के द्वारा दिया गया प्रासुक आहार दिन मे एक वार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना, यह श्रावक की ग्यारहवीं उद्दिष्ट-आहार-त्याग-प्रतिमा कहलाती है। इसे धारण करने वाले उत्तम श्रावक को ऐलक और क्षुल्लक कहा जाता है। उद्भिन्न-दोष-बहुत समय से सील-वद करके रखी गई घी शक्कर आदि आहार सामग्री साधु के आने पर तुरत खोलकर देना उद्भिन्न नाम का दोष हे। उद्यमी-हिसा-खेती या अन्य उद्योग-धधो मे होने वाली हिसा को उद्यमी-हिसा कहते है। उद्योत-नामकर्म-उष्णता रहितं प्रकाश को उद्योत कहते है। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर मे उद्योत होता है वह उद्योत नामकर्म है। यह चद्रमा, चद्रकात मणि ओर जुगनू आदि मे होता है। उन्मिश्रदोष-अप्रासुक जल, फल, वीज आदि से मिश्रित आहार साधु को देना उन्मिश्र दोष हे। उपकरण-दान-पिच्छी, कमण्डलु और शास्त्र आदि मोक्षमार्ग में सहायक उपकरण श्रद्धापूर्वक सद्पात्र को देना उपकरण-दान कहलाता है। उपकल्की-देखिए कल्की। उपगूहन-मोक्षमार्ग पर चलने वाले साधक के द्वारा अज्ञानतावश या असमर्थतावश यदि कोई गलती हो जाती है तो उसे ढक लेना या
52 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश