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प्रात काल भगवान महावीर का निर्वाण हुआ उसी दिन सध्याकाल इन्हे केवलज्ञान हुआ। केवलज्ञान होने के बारह वर्ष बाद इन्हे मोक्ष प्राप्त हुआ। इन्द्रिय-जो सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान कराने में सहायक है उसे इन्द्रिय कहते है। शरीरधारी जीवो को ज्ञान के साधन रूप स्पर्शन आदि पाच इन्द्रिया कही गयी है। इन्द्रिया अपने-अपने निश्चित विषय को ही जान पाती है, जैसे-आख मात्र रूप को जानती है वह रस को नहीं जान पाती। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाच इन्द्रिया है। ये पाचो इन्द्रिया द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय दोनो रूप मे होती है। इन्द्रिय-जय-पाचो इन्द्रियो को ज्ञान, वेराग्य और उपवास आदि के द्वारा वश मे रखना इन्द्रिय-जय कहलाता है। यह पाचो इन्द्रियो के भेद से पाच प्रकार का है। यह साधु का मूलगुण है। इन्द्रिय-सयम-देखिए सयम। इन्द्रिय-सुख-साता वेदनीय आदि पुण्य कर्म के उदय से जो इन्द्रिय जनित सुख प्राप्त होता हे उसे इन्द्रिय-सुख कहते है। इष्ट-वियोगज-आर्तध्यान-स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तु या व्यक्ति का वियोग होने पर उनके लिए निरतर चिन्तित या दुखी होना इष्ट-वियोगज नाम का आर्तध्यान कहलाता है। इहलोकभय-'इस भव मे लोग न मालूम मेरा क्या बिगाड करेगे'-ऐसा भय बना रहना इहलोक भय है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 47