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आकस्मिक-भय-अचानक आ जाने वाली विपत्ति की आशका से जीवो को जो भय उत्पन्न होता है वह आकस्मिक-भय है। आकाश द्रव्य-जो समस्त द्रव्यो को अवकाश अर्थात् स्थान देता है उसे आकाश द्रव्य कहते है। इसके दो भेद है-लोकाकाश और अलोकाकाश। आकाशगता-चूलिका-आकाश मे गमन करने की विद्या एव जप तप आदि का वर्णन करने वाली चूलिका को आकाशगता चूलिका कहते है। आकाशगामित्व ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु सुखासन से बैठे-बैठे या खडे रहकर बिना डग भरे आकाश मे गमन कर सकते हैं उसे आकाशगामित्व या आकाशगामिनी-ऋद्धि कहते है। आकाश-चारण ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु, जीवो को बाधा न पहुचे इस तरह चलते हुए भूमि से चार अङ्गुल ऊपर आकाश मे गमन कर सकते है उसे आकाश-चारण ऋद्धि कहते हैं। आकिञ्चन्य धर्म-समस्त परिग्रह का त्याग करके 'कुछ भी मेरा नहीं है'-इस प्रकार का निर्लोभ भाव रखना आकिञ्चन्य धर्म है। आक्रोश-परीषह-जय-क्रोध बढाने वाले, अत्यत अपमानजनक, कर्कश और निन्द्यनीय वचनो को सुन कर जो साधु विचलित नहीं होते और सामर्थ्यवान होकर भी उसे शान्त-भाव से सहन करते है
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 95