Book Title: Indian Antiquary Vol 41 Author(s): Richard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar Publisher: Swati PublicationsPage 25
________________ FX BY VARY, 1912.) TRAVENOORE ARCHÆOLOGICAL SERTES Text.24 1 || वेदानुज़रते जगंति वहते भूगोलमुद्विभ्रते. दैत्यान् दाम्यते बलि छलयते क्षक्षयं कुछ(से)[1][से ]मुंबंधयते हलिं' कलयते कारुण्यमातन्वते म्लेछान् मूच्र्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाव (तस्मै नमः ॥ [१] संवत् १३४८ वर्षे आषाढ शुदि १३ रवावयेह श्रीमवणहिलवाटकाधिष्ठितमहारा4(जाधिराज श्रीसारंगदेव कल्याणविजविराज्ये तपादपोपजीविनि महासांधि० महामा (स्य)[श्री मधुसूदने श्री श्री करणादि समस्त मुद्राव्यापारान् परिपंथयतीत्येवंकाले प्रवर्त्तमानेऽमु 6 (ने[व] स्वामिना पा[ह पुरमुद्रायां नियुक्त महं श्रीपेथडपतिपंचकुलपतिपत्ती देव.. 7 (श्री) [क]पपादानां [पूजाविध प्रेक्षणीकनिमित्तं- अ पलमानस्थितकस्य तथा संप्रति महं 8 [श्री] पेधडप्रभृति[पंचकुलेन तथा पंचमुखसमस्तनगरेणच कृतन प्रदेववायम्यच शा-(14) 9 सनपाहिका यथा ॥ अमीकपलमानदेवदायस्य व्यक्तिः ।। वृ. करण स्थितकेद्र १८० तथा १(०) 10 मंडपिकायां स्थितकेद्र ७२ तथा श्रे. देवलेन आत्मनः श्रेयोऽयं पलमानभास्मीय सीकिरि 11 सरक श्रीकृष्णपा[वानां] दत्त ७२ तथा सस्थद्र ३६ तथा अमावास्यां २ स्थितके द्र४ वर्षे प्रति जाते 1256 एवमेतत् पूर्वस्थितकं ।। सांप्रतं उपविष्टमहं श्रीपेथडप्रभृतिपंचकुलेन तथा पुरोध13 रणीधर | पुरो०.सि[रधर । पुरो० मोषादित्य | पुरो हरिसर्म | सा. आभा । साहेमा । सा०महण14 सीह । उ० तेजा । सामयधर । श्रे० साढल | श्रे०देवल । सा० समरा । साधगपति | ० भासधर 15 सा० गुणधर । साभासीहा नागड] | श्र० सामत | सा० झांझा | सा वयजलदेव | सार16 पाल । सा० पदमसीह । श्रे० मानसीह | श्रे. देवसीह भण शा०ता । भण. गांधी | सा. जा[1]27 ल्हण | • गुणराज । सा. केसव | सा झंझा | श्रे. रतन| सान्त्रीकम । सोनी. अर्जुन | सा०चांग18 देव । सादामर | कंसा. जयता | पूगी तेजा | साकेसव । सामूरा । सा• कुंदा । सानागपाल19 प्रभुति समस्तमहाजन । तथा समस्त वणिज्यारका तथा समस्तनौवित्तकप्रभूति पंचमुखन. . 20 गरण निजपूर्वजानां श्रेयसे देवश्रीकृष्णपादानां पूनानैवेद्यप्रेक्षणीकनिमित्तं" कृतनव्या 21 देवदायस्य व्यक्तिः ।। मांजिष्टा धडी १२.७०|| विक्रेतु कामो ददाति तथा हींगुदा बडा १०१ 22 दायकपारकी पदवः ।। कणश[क]ट १ पायली छाडा १ पायली पा०13०पृततलपडा १५(1)23 ली १ एतत् विक्रेता दधाति । एष समस्तदेवदायो भाचंद्रार्कतारकं यावत् समस्तपंचमुखनग24 रेण दातव्यः पालनीयश्च ।। TRAVENOORE ARCHÆOLOGICAL SERIES. BY K. V. SUBRAHMANYA AIYER, B.A., OOTACAMUND. In the native state of Trayencore in the Malras Presidency, the Archaeological Department has been in existence since the days of the late Professor Sundaram Pillai, who published gomo of te inscriptions of the Vêņa 1 kings first in the Matras Mail and eventually in the pages of this journal. After his death, the Archaological Survey does not appear to have came to an end. From Mr. Nagarnisk's Manual of Travencore, pp. 176-7, it is clear that all the inscriptions of the Beste, which are 450 in number, have been already examined in a rough way. When Mr. Gopinatha Rao was appointed Superintendent of Archæology in the State a few years ago, it was thought he would direct his energies to the publication of accurate transcripts and translations of the inscriptions of the State which had all been tentatively examined before his appointment was contemplated. We shall now see how he has discharged the dati's entrusted to him. Eleven numbers of the Travencore Archeological Series have already been issued and more are promised. So that, judging from the quantity of work turned out, his achievement is cer:ainly commendable. From the original stone. Read "मुद्विधते. Rsad is. am Read म्लेच्छांन्. >> There is some space left between the letters and w. 20 Raad प्रेक्षणक'. ___30 Read अग्रे. an Read पाल्बमान'. 3 Real अपीवपाल्पमान'. 'Kalपाल्बमान. सीकिरि is probablya mistake for सीरक. Is Read सरस्थ. 30 Read अमावास्यायां. 37 Ra1 जनर' 33 777 is probably a inistake for YETI Vit. " Red पृ.Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 ... 320