Book Title: Indian Antiquary Vol 41
Author(s): Richard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar
Publisher: Swati Publications

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Page 53
________________ MARCH, 1912.1 THE VEDIC CALENDAR 49 ___The passage of the Nidana-Satra in which a few forms of Garam-Ayana are defined, runs as follows, v. 11, 12:___10भथातस्संवस्तरा वगाणां पंचसवस्सरा वर्गाः। तेषु धारो मनीषया कर्ण उपसबो विचार संस्था वा एष प्रतानिच. पद्मिशीनो नवोनश षडहोमोऽथ सावनोऽटारशभियायानहाभिः सावनास्परो नाक्षत्रमिति मासच तस्य चैव त्रयोदश. चांद्रमसस्सायनश्चोभावथाटारबुनमोऽष्टा समशिते पौर्णमास्यां प्रसाधयेत् । गवामयनस्थोपायांवचतुरः प्रतिपादयेत्. तेषां नाक्षत्रः प्रथमस्तस्य सप्त विशिनो पासाः सप्तविंशतिनक्षत्राणीति. सस्य कल्पः प्रथमस्य प्रथमस्थाभिप्लवस्थ स्थाने चिकलुकम्यहं कुर्यात्वाग्विषुवत उत्तमस्योत्नमस्थोई. विषुवतः से खस्वभिप्रयतंग एव कृमाः स्थुरिरयके. एते चाधिकृता न चापि निवर्तयत्ययापि दृश्यते त्र्यहन्यासं कृमो यथा स्वरसामानस्त्रिकक्रपंचाहइचाभिप्लवसं. सप्तदशरात्रे । स्वरतंत्रा इत्यपरम्. एवं च संचाविलोपः अपि च सेवषु त्रिकटुकञ्चहः स्वसंबो भवति. भय नवोनस्तस्यैवं त्रयोदश मासा. संभार्ययोर्मासयोर्नवाई लुंपेञ्चतुरहमेव माग्विषुवतः पंचाहमूर्य तस्य कल्पः प्रथमस्याभिप्लवस्य स्थाने ज्योतिषं च गां च कुर्यात्प्राग्विषुवत क विषुवत उत्समस्याभिप्लवस्य स्थाने क्योतिषं. नाप विषुवामभिभवत्युत्तरेऽत्र पक्षासे विषुवामुपसंख्यायत इति. अथ पडनाइचांद्रमसाः परपूर्णोपक्रमाः नावसानाः पूर्व पक्षसि मासास्स्युः जनोपक्रमाः पूर्णावसाना उत्तरे. तस्थ कल्पः प्रथमस्य प्रथमास्याभिलवस्थ स्थानेऽभिप्लवपंचाहं कुर्यास्याग्विषुवत अमेषु मासेषु उत्तमस्थोसमस्या विषुवतः। याण्यासस्सावनः। स एष भादिस्यसंवत्सरो नाक्षत्र आदित्यः खलु पाश्वतावहिरहोभिर्नक्षत्राणि समवेतिआगोवा अयोगशालमे केक नक्षत्रमुपतिष्ठत्वहस्सीयं च नवधा कृतयोरहोराचयो कलेचेति. सांवत्सरास्तारचनपंचायतं कला से षण्नववगोः स पद षष्ठिविशतः षष्ठिविशसे । इलोको भवतः-- सप्तविंशती राष्ट्रस्य राज्ञो वसतयो मिताः। त्रयोदशाहं पयोदशाहमेकैकं नक्षत्रमुपतिष्ठति ॥ . त्रयोदशाहानि तृतीय महाश्चतसस्त्रेधा शतयो विकुर्वन् । त्रिणव पंथामं विसतं पुराणं चस्वारिंशसा नवरात्रैस्समनुते ॥ इति. अथाष्टादशभिर्यायानादित्यसंवत्सर एक तेर्यगवनिको भवति. भादित्यः खलु शश्वदेकरा पण्मासानुदरनेति नव चाहानि तथा दक्षिणा. तरप्येते इलोका भवंतिः यस्मिन् परिवत्सरे सौम्यो मासोऽथ चांद्रमसो। माक्षत्रोन विलुण्बते कस्स्वित्तं वेदक स्वित् ॥ अष्टासप्तत्रिशते तस्मिन् संवत्सरे मिते। सौर्यों मासोऽय चांद्रपसो नाक्षत्रो न विलुप्यते ।। सप्तविंशतिमेवैष समा हानेति दक्षिणा। सथोरड् सप्तविंशतिमिति ॥ तस्य कल्पः संभार्ययोर्मासयोरष्टादशाहान्बुपाहरेत्रवाहमेव प्राग्विषुवसः नवाहमूर्ष विकाकांइचाभिप्तवं च प्राग्विषुवतोऽभिवं च विकदुकांदचावृत्तानूर्व विधुवसः। Then the years of the classes : 11 the classes (are) of five years. In them the bage by his wisdom will know the sessions of the ritual, and tho basic forms (of the sacrificial rites),13 and the vows or ceremonies (to be obserrel) in them. MFromपंच to सावनात्परोctor "B)-and perhapa farther-seems to bea metrical quotation from some other work; with one or two words separated, and one omitted.-J. F. Fleet. 11 Varga is not faitly to be rendered by cycle.' Cycle is yuga or chakra: varga is a group, olasa.'-J. F. Fleet. 13 Upasal: lit. the sitting down, waiting for the arrival of the Anal sacrificial day.' 13 Sanstha; lit. 'a staying or abiding together.'

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