Book Title: Indian Antiquary Vol 41
Author(s): Richard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar
Publisher: Swati Publications

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Page 23
________________ FEBRUARY, 192.) SOME UNPUBLISHED INSCRIPTIONS Text.5 1 ओं ॥ देव्यै नमः ॥ वक्वं साक्षाद्वितीयो हिमगुरिति भुजं पारिजातस्य वाली काप्यन्यस्यति सुंगं स्त2 मतदमपरेभस्य कुंभस्थलीति | मंथसुधाण्णवाणः प्रकटितपिहित श्रीणि पर्यायवृत्या लक्ष्म्या रंगानि तरनुप3 धि वि[मशन्पातु युष्मान्मुरारिः॥१॥चाहमानान्वये जातः पृथ्वीराजो महीपतिः । तन्मातुश्चाभवद्भाता कि[म्हणः कीर्तिवर्जु (D+ नः ॥२॥ गुहिलौतान्वयव्योममंडनैकशरच्छशी । गांभीर्योदार्यसौन्दर्यगुणरत्न[महो अधिः ॥३॥ मत्वा हम्मी रवीरं निखिलव (1)5 सुमतीशल्यभूतं प्रभूतं योग्योसौ वीरगोष्ठीनिपुणत रमतिः शत्रुलक्ष्मीभुजंगः । प्रादाद्राजन्यचूडामाणिकिरण गणासंजनि तपादो G भूपस्तस्मै प्रहधों विशदगुणनिधेरासिका दुर्गमुग्रं ॥ ४ ॥ तस्मितुन स्ववुद्धचा निखिलरिपुचमूमूणि विन्यस्व पार[म्यप्रोत्तुंगशंगव्य तिकर7 बशतो भनमाग्गोष्णरइमः । [रेरे] हम्मीर वीर क स तव महिमा निर्विशंतीध्वजार्दिव्याकारप्रतोली हदयमि भुवी निर्मिता किल्हणेन ।। ५॥ (1) 8 आस्तां तावत्प्रतोली तनुपविरचितं कोष्ठकद्वंद्वमेतत्प्रौच्चैरालानयुग्मं विजय[वर करेः। शत्रुलक्ष्म्याश्च सन । मन्येस्यैवार्थिसार्थप्रकटसुरतरोः किल्हणस्य प्रकाशं मूर्नबुघल्कथंको जगति [विजयते] विक्र[मै]को न योग्यः" ॥६॥ ॥ किंच किमुच्यते तस्य प्रताप10 माहात्म्यं यत्कृते निशाचरचक्रवर्तिना विभीषणेनाप्येष प्रहितो लेखः ।। तद्यथा ॥ लंकाया रघुवंशमी. क्तिकमणे (11) 11 रामस्य पादांबुज[ध्यानालव्धवरो निशाचरपतिः स्मश्रयः सादरं । दिव्यासीगढ[व]तिनं दृढभुजं चंडप्रता पोद्वतन्सत्कीा (1) 12 धवलीकृतत्रिभुवनं श्रीकिल्हणं भाषते ॥ ७॥ कार्य सेतुनिबंधने' [प]ते रात्रिविवं संयतैः सार्द्ध वानर ऋक्ष यूथ पतिभिः 13 साहाथ्यमावां स्थितौ । तस्मात्पंचपुरा घि[पा]य विभुना दत्ता कि[ लै] कावलिमा सापि पुरी त्वया तु लिखित [प]वं स्वहस्तांकितम् ।। [*] 14 पृथ्वीराजो महाराजो रामोसौ संशयं विना। हनूमानिश्चितं वीर भवानडुतविक्रमः ॥ [९] || गुहिलोतान्वये जातस्तेन लूनं तवेदृशं । (I) 1 कलिः कालो न कोप्यस्ति सत्यं धर्मपरायणः ।। (२.)। कथमन्यथा ।। दग्धं पंचपुरं हताः "प्रति[भ]ढा बद्धस्तदीशस्त्वया कंठे वीर निवेश्य वा - 16 युग]लं सन्नद्धवाजिस्थितः । एतत्सर्वमसांप्रतं तव पुनः सच्छौर्यविद्यानिधे संवद्धोपविषद्मोपि महतो छेनुं न संयुज्यते || १०(११) 17 उत्खातप्रतिरोपणं [कृतव ]ता मालिन्यमुन्माग्जितं सत्यं क्षत्रियपुंगवेन भवता कुंदावतातं यशः । प्रान यावदवं नभस्तलमलं प्रचो-(1) 18 तो भास्करो यावद्दावभिदस्तययमवनिवारा निधिर्वर्त्तते ।। ११ (१२)। पुनः पुनः किमु [स्वे] स्वे वचस्तथ्य शणुष्व मे | स्वीकर्तव्याथवा लंका 19 देयं पत्रमथाभयम् ।। [ १३* ] इयं चैकावली रत्नाकरेण सेनुबंधोचताय रामभद्राय स्वगांभीर्यगुण परिरक्षता उपायनीकृत्य ढौ (1) 20 कितासीत् ॥ ॥ अपि च डोडान्वये समभवत्किल वल्हनामा 20सत्वैकभूनिखिलशत्रुचमनिहता । श्री किल्ह णस्य पदपंकजचंचरीक-(II) 21 स्सस्थानभूरनुपमी भुवि लक्ष्मणाययः ||१(१४)। सोत्र प्रशस्तिनिर्माण भक्त्याध्यक्षपदे स्थितः [1] सर्वदा स्वामिचित्तज्ञो लक्ष्मणः सव्व लक्ष्मणः ॥ [१५* ]E 22 संमन् (0) १२२४ माघ शुक्ल सप्तम्यां गुरौ (I) निःपन्नेयम् ।। s From a photograph.. Expressed by a symbol. ' Read भुन्धा . . This ought to be विशवगुणनिधये, but will not suit the metre. . Read स्वबुद्धचा. 10 Read रइमो. ॥ This ought to be विजयवरकरिण:, but will not suit the metre. 13 The meaning of this line is not clear to me. 13 Read qraigor and a - Read प्रतापोजतं सत्की .. 16 Read °निबंधने. 10 Read प्रतिभटा. " Read पद्ध. 19 Read बा. 19 Read °बंधो. 20 Read °सवैक'. A Read सर्वलक्ष्मा but this will not suit the metre.

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