________________ हस्तिकुण्डी एक परिचय-३ प्रदेशों में हणों का फैलाव हो गया। हूण राजा तोरमारण के साम्राज्य के अन्तर्गत सिंध, पंजाब, राजस्थान और मध्य भारत का दक्षिणी प्रदेश मालवा था / हूणों की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने वाला मालवा का यशोधर्मन् था जिसने 585 विक्रमी में मुलतान के समीप हूणों के नेता मिहिरकुल को परास्त कर देश से खदेड़ दिया। ये हण सूर्य के उपासक थे। हण राजा तोरमारण तथा मिहिरकुल जैनधर्म के प्रेमी थे। प्राचार्य कालक तथा प्राचार्य हरिगुप्तसूरि को वे गुरु रूप में मानते थे / यशोधर्मन् की दिग्विजयों का वर्णन मन्दसौर के समीप सौंधनी ग्राम में पाषाण के दो विशाल स्तम्भों पर उत्कीर्ण है / इस प्रशस्ति में उल्लिखित है कि इस राजा के चरणों में ब्रह्मपुत्र से लेकर महेन्द्रपर्वत तथा गंगा और हिमालय से लेकर पश्चिमी समुद्रतट तक के प्रदेशों के सामन्त लोटते थे। इससे सिद्ध होता है कि छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर यशोधर्मन् का राज्य था। उसकी मृत्यु के पश्चात् मालवा फिर गुप्त सम्राटों के अधीन हो गया / गुप्तों के पश्चात् यह प्रदेश सम्राट हर्षवर्द्धन के साम्राज्य के अन्तर्गत हो गया, पर शासन चित्तौड़ से ही होता रहा होगा / हर्षवर्द्धन की मृत्यु के उपरान्त इस प्रदेश पर प्रतिहार राज्य करते थे। 813 वि. में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने गुजरात और मंडोर तक अपना राज्य विस्तृत किया / बाद में प्रतिहारों की एक शाखा ने मालवा में अपना राज्य स्थापित किया। प्रतिहार राजा यशोवर्मा को वि. सं. 860 के लगभग तीसरे गोविन्दराज ने पराजित कर गुजरात पर अधिकार जमा लिया। इस क्षेत्र पर राष्ट्रकूटों का राज्य गोविन्दराज तृतीय के युग में हुआ होगा। गोविन्दराज दक्षिण से उत्तर भारत में