________________ शिलालेख-८१ श्री हस्तिकंडिकायां चैत्यगृहं जनमनोहरं भक्त्या / श्रीमबलभद्रगुरोर्यद्विहितं . श्री विदग्धेन // 6 // श्री हस्तिकुण्डी नगरी में श्रीबलभद्र गुरु के लिए विदग्धराज ने जो जन-मनोहर जिन-मन्दिर भक्ति से बनाया है / / 6 / / तस्मिल्लोकान्समाहूय नानादेशसमागतान् / प्राचन्द्रार्कस्थिति यावच्छासनं दत्तमक्षयम् // 7 // __ उस मन्दिर में नाना देशों से आए हुए जन-समुदाय को आमन्त्रित कर उनकी साक्षी में चन्द्र-सूर्य की स्थिति तक यह अविचल राजाज्ञा प्रदान करता हूँ / / 7 / / रूपक एको देयो वहतामिह विंशतेः प्रवहणानां / धर्म [पर्थ...] क्रयविक्रये च तथा // 8 // ___बीस पोठों के क्रय-विक्रय तथा आयात-निर्यात पर धर्मार्थ नित्य एक रुपया देय होगा / / 8 / / संभतगंच्या देयस्तथा वहत्याश्च रूपकः श्रेष्ठः / घाणे घटे च कर्जे देयः सर्वेण परिपाट्या // 6 // भरी हुई गाड़ी के यहाँ से गुजरने पर एक रुपया देना होगा। प्रत्येक घारणी तथा अरहट पर एक कर्ष सबको रीति के अनुसार देना होगा / / / 1. कर्ष-एक प्रकार की मुद्रा /