________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-८६ टिप्पणी-यह शिलालेख मम्मटराज के समय राजाज्ञा के रूप में था, जो या तो भोजपत्र अथवा ताम्रपत्र पर रहा होगा पर वास्तव में इस शिलालेख को खुदवाया मम्मट के पुत्र धवल ने ही और खोदने वाला भी एकमात्र शतयोगेश्वर सोमपुरा था। शिलालेख 316 (वि. सं. 1335)! नों संवत् 1335 वर्षे श्रावण वदि 1 सोमेऽद्यह समीपाट्टी मांडपिकायां भांया हट उ भावा पयरा मह सजनउ महं धीरणा ठ० धरणसोहउ ठ० देवसीह प्रभृति पंचकुलेन श्री राताभिधान श्री महावीर देवस्य नेचा प्रचय वर्ष स्थितिके कृत द्र 24 चतुर्विशतिद्रम्मा वर्ष वर्ष प्रति समोमंडपिका पंचकुलेन दात्तव्याः पालनीयाश्च / / __ॐ संवत् 1335 वि. के श्रावण वद 1 सोमवार के दिन सेवाड़ी मंडप के भाया, हटा, भावा, पयरा वयोवृद्ध सज्जनजी, धीणाजो, ठा० धनसिंहजी, ठा० देवीसिंह आदि पंचों ने राता महावीरजी के मन्दिर में ध्वजा चढ़ाई व 24 द्रम प्रति वर्ष ये लोग देंगे व परम्परा का पालन करेंगे / बहुभिर्वसुधा ........तस्य तदा फलम् / यह 666 के शिलालेख का १८वां श्लोक है / 1 316 से 322 तक के शिलालेख हस्तिकुण्डी के मन्दिर के खम्भों पर खुदे हुए हैं। 2 समीपाट्टी-सेवाड़ी 3 महं -महत्-बड़े के अर्थ में