________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-८४ गेहूँ, मूग, जौ, नमक एवं राल आदि धान्य विशेष को तोलते हुए प्रत्येक द्रोण पर एक माणा सभी को देना चाहिये / / 17 / / बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सग रादिभिः / यस्य यस्य यदाभूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् // 18 // इस पृथ्वी को सगर आदि बहुत से राजाओं ने भोगा है / यह भूमि जब जिसकी होती है, तब वह राजा उसका फल भोगता है / अर्थात् जो राज करेगा वह इस राजाज्ञा का पालन करवायेगा तथा इस धन का सदुपयोग करवाएगा।।१८।। रामगिरिनंदकलिते विक्रमकालेगते तु शुचिमासे / श्रीमद्बलभद्रगुरोविदग्धराजेन दत्तमिदम् // 16 // 673 विक्रमी वर्ष के बीतने पर आषाढ़ मास में विदग्ध ने श्रीमान् बलभद्राचार्य के लिए यह दानपत्र दिया था / / 16 / / नवसु शतेषु गतेषु तु षण्णवतीसमधिकेषु माघस्य / कृष्णैकादश्यामिह समर्थितं मम्मटनृपेण // 20 // 666 की माघ वदी एकादशी को मम्मट राजा ने इस राजाज्ञा का समर्थन किया / / 20 / / 1. राल-एक प्रकार का धान्य विशेष / 2. द्रोण-एक नाप / 3. माणक-एक नाप जो पाँच सेर का होता है।