________________ शिलालेख-८६ तीन नये शिलालेख शिलालेख सं.१] ___सं. 1011 ज्येष्ठ वदी 5 श्री शान्तिभद्राचार्यमण्डपोऽयं महिर......... . सूत्रधार वामक शुभहस्तेन कारितो सैव दिने श्री यशोभद्राचार्याणां सूरिपद प्रतिष्ठेति / संवत् 1011 वि. जेठ वदी 5 श्री शान्तिभद्राचार्य ने यह मण्डप वामक नामक सेलावट के शुभ हाथों से बनवाया इसी दिन श्री यशोभद्राचार्य की सूरिपद पर प्रतिष्ठा हुई थी। शिलालेख सं.२ (संवत् 1048 वैशाख वद 4) श्री शान्तिभद्राचार्यैर्गोष्ठ्या च मण्डपोऽयं कारितः / श्री शान्तिभद्राचार्य ने समिति के द्वारा यह मण्डप बनवाया। 1 श्री यशोभद्रसूरि का स्वर्गवास यशोभद्रसूरिरास के अनुसार संवत् 1026 में हा। सं 1877 में दीपकविजयजी कृत सोहमकूलरत्नपट्टावलि रास में यशोभद्रसूरि के विषय में लिखा है:सांडेरागच्छ में जसोभद्रसूरिराय/नवसेंहे सत्तावन समे जनम वरस गछराय/संवत नवस हैं अडसठे सूरिपदवी जोय अर्थात् उनकी सूरिपद प्रतिष्ठा 668 में हुई एवं जन्म 657 में / इनका स्वर्गवास 1026 में हुआ। इनकी सूरिपदवी की जयन्ती निश्चित रूप से 1011 विक्रमी की जेठ वद 5 को ही हुई होगी।